Sunday, April 6, 2014

" पता ही नहीं चला ....."


















" पता  ही  नहीं  चला ....."

हम  तो  मौहब्बत  की  पेश - ए - ख़िदमत  में
अख़लाक़  की  निस्बतों  को  तराश  रहे  थे .....!
और  वो  ना  जाने  कब
एक  रोते  बच्चे  को
हँसा  कर  चला  गया
पता  ही  नहीं  चला .......!!
जाते  जाते  एक  अबला  को
ठोकर  लगने  से  बचा  गया
पलट  कर  देखा  तो
एक  राह  गुज़रते  बुज़ुर्ग  को
काँधा  दे  कर  चला  गया
पता  ही  नहीं  चला .......!!

वो  चला  जा  रहा  था
अठखेलियाँ  किये  जा  रहा  था
रास्ते  के  लोग  उसे
पागल  कह  दिया  करते  थे
थोड़ा  मैला  सा  रहता  था  वो
कपड़े  फटे  हुए  थे  उसके .....!

मग़र  हम  तो  मौहम्मद  की  नाव - ए - मन्नत  में
तसल्ली  से  बैठ  कर  तस्बी  के  दाने  गिन  रहे  थे ...!
ईलाही  की  चादर  में  ख़म  ना  पड़  जाए
इसलिए  दरग़ाह  को  सुबह  शाम  बुहार  रहे  थे ....!
और  वो  ना  जाने  कब
सुनसान  गलियारे  में  पड़े
एक  बे क़फ़न  मुर्दे  को
अपना  लिबास  पहना  कर  चला  गया
पता  ही  नहीं  चला ...........!!

पास  ही  एक  क़बूतर  दर्द  से  फड़फड़ा  रहा  था
हम  रात  भर  उसके  अच्छे  होने  की  दुआ
अपने  ख़ुदा  से  माँगते  रहे
और  वो  ना  जाने  कब
उस  क़बूतर  के  ज़ख्म  पर
मरहम  लगा  कर  चला  गया
पता  ही  नहीं  चला .................!!

बहुत  ग़ुरूर  से  चलता  है  कम्बख़त
अकड़  के  मारे  आँख  तक  नहीं  मिलाता
मस्ज़िद  के  पास  से  गुज़रता  है  रोज़
मग़र  ख़ुदा  के  नज़दीक  तक  नहीं  आता ....!

बदज़ात .... लगा  रहता  है  दिन  भर
चींटियों  के  घर  बनाने  में .............!!

कब  सोया  कब  जागा
कब  खाया  कब  नहाया
पता  ही  नहीं  चला....................!!

अल्लाह  बचाये  ऐसे  ग़ुनाहगारों  से ....!!!!


********* विक्रम  चौधरी ********** 

" तस्वीर कैसी ....."



















" तस्वीर  कैसी ....."

ना  करो  छींटा  कसी  सबके  यहाँ  पर  नाम  हैं
देश  की  टूटी  कमर  पे  उठते  सबके  पाँव  हैं
छोड़  दो  एक  दूसरे  पर  थूकना  मुहँ  मारना
सीख  लो  आईना  रख कर  ख़ुद  को  भी  फटकारना ...!!

जा  के  दूजे  घर  भी  देखो  एक  बच्चा  रो  रहा
बाप  उसका  जाने  किसके  बोझ  को  यूँ  ढो  रहा
फ़र्क़  में  पिसता  अपाहिज़  आग  में  सिकता  रहा
चन्द  रुपयों  की  हवस  में  फ़ैसला  बिकता  रहा ......!!

देखो  ये  तस्वीर  कैसी  अपने  हिन्दुस्तां  की  है
रोड  पर  फ़ैशन  की  फ़ोटो  झुलसी  सूरत  माँ  की  है ...!!

एक  तरफ़  सुनसान  राहें  दर्द  और  फाँके  की  हैं
एक  तरफ़  मख़मल  पे  चलती  रैलियाँ  नेता  की  हैं
एक  तरफ़  बेटी  के  पैदा  होने  पर  ख़ुशियाँ  यहाँ
एक  तरफ़  बेटी  की  गरदन  पर  चली  छुरियाँ  भी  हैं ....!!

एक  तरफ़  कूल्हों  के  ऊपर  कूल  का  ठप्पा  भी  है
एक  तरफ़  तशरीफ़  रखने  पर  हुआ  झगड़ा  भी  है
एक  तरफ़  गाड़ी  में  कुत्ता  है  विदेशी  मूल  का
एक  तरफ़  देशी  नसल  की  साख़  पर  लफ़ड़ा  भी  है ....!!

और  भी  हैं  बातें  कई  पर  रहने  दो  उनको  वहीँ
वरना  मुर्दे  भी  अदालत  में  खड़े  हो  जायेंगे
ढोल  फिर  फट  जाएगा  शिक़वे  गिले  हो  जायेंगे ....!!

क्या  यही  सन्देश  दुनियाँ  को  दिया  जाए
क्या  खोखले  भारत  का  सच्चा  ख़त  पढ़ा  जाए
या  चलो  मिल  कर  वतन  को  फिर  जिया  जाए
सत्य  के  धागों  से  फ़ितरत  को  सिला  जाए ......!!

है  ज़रा  मुश्क़िल  घड़ी  सब  एक  हो  जाओ
अब  ना  अपनी  रूह  के  हिस्सों  को  तुम  खाओ ....!!


*********** विक्रम  चौधरी ************

Tuesday, April 1, 2014

" हाँ ... धुआँ उठा है ...."


















" हाँ ... धुआँ  उठा  है ...."

हाँ  धुआँ  उठा  है
लगी  है  आग  मुझमें
जली  है  आँख  दुःख  में
हाँ ... धुआँ  उठा  है  ....
कुछ  ले  के  उठा  है  अपने  साथ ..

हाँ  ...  धुआँ  उठा  है ....!!

मेरे  भीतर  शीशे  का  चेहरा
थोड़ा  धुँधला  थोड़ा  सुनहरा
मार  के  कंकर  तोड़ा  है  मैंने
देता  है  मुझको  धोख़ा  वो  ग़हरा ...!!

मेरी  वो  बूढ़ी  नानी
अब  ना  कहेगी  कहानी
देगी  ना  इमली  वो  खट्टी
होगी  ना  राजा  की  रानी
अब  ना  पतंगों  पे  होंगी
सिवइयों  की  शर्तें  सुहानी ....!!

चले  गए  सब  ले  करके  बस्ते
रोते  बिलखते  बाहें  झटकते
सुना  है  ले  कर  गए  हैं  वो  चूल्हे  भी  अपने  साथ
गुड़  की  डली  साथ  में  सारे  झूले  और  अपने  हाथ
सुना  है  उनमें  से  आधे  ही  घर  को  पहुँचे
आधे  किसी  क़ाफ़िले  ने  रस्ते  में  धर  दबोचे ....!!

शायद  कोई  रास्ता  बंद  होगा  ....
या  फिर  किसी  कूए  में  जिन्द  होगा .....!!

सुना  है  वो  बँट  गया  है  जो  एक  था
जागा  था  मैं  पर  ना  जाने  क्यों  चुप  था ...
जब  हो  रहा  था  बँटवारा  दिलों  का
बाग़  के  फूलों  का  चूहों  के  बिलों  का
खेतों  के  हलों  का  रुख़सार  के  तिलों  का ....!!

जब  हो  रहा  था  बँटवारा
हवा  में  बहती  ख़ुशबू  का
मैं  चुप  था ...................!!

शायद  कोई  रास्ता  बंद  होगा  ....
या  फिर  किसी  कूए  में  जिन्द  होगा .....!!

हाँ ... धुआँ  उठा  है  ....
चुभी  है  बात  मुझमें
बुझी  है  रात  तुझमें
लहू  के  सूख  जाने  तक
क़िस्सा  यूँ  ही  चला  है ...!
हाँ .... धुआँ  उठा  है ........!
कुछ  ले  के  उठा  है  अपने  साथ ...!!


******* विक्रम  चौधरी ********

Wednesday, March 5, 2014

" इन्सान का टुकड़ा हूँ मैं ..."



















" इन्सान  का  टुकड़ा  हूँ  मैं ..."

थे  शहर  में  गाँव  में
कूचों  के  कूड़ेदान  में
आधे  जले  श्मशान  में
आधे  बुझे  मैदान  में
इन्सान  के  टुकड़े  थे  वो
फैंके  थे  जो  इन्सान  ने ....!!

टूटे  नहीं  थे  पेड़  से
ना  उगे  थे  खेत  में
आये  ना  जो  आँधी  के  संग
बरसे  नहीं  थे  मेघ  में
इन्सान  के  टुकड़े  थे  वो
निकले  जो  माँ  के  पेट  से ....!!

फिर  क्यों  भला  नौंची  गयीं
सूरत  मौहल्ले  में  कई
पर्चे  मुफ़त  बाँटे  गए
थीं  क़ौम  की  बातें  नयी .......!!

मैंने  भी  एक  पर्चा  पढ़ा
अपनी  नज़र  से  मैं  लड़ा
लिखे  थे  ऎसे  लफ्ज़
जिनको  पढ़  के  मूँह  औंधा  पड़ा ...!!

परदों  में  जो  लिपटा  था  वो
चेहरा  बड़ा  ही  नग्न  था
बाज़ार  था  ऐनक  भरा
अपनों  का  क़त्ल -ए- चश्म  था .....!!

कम्बख़त  मैं  इत्तेफ़ाक़न
बन्दा  था  उसी  क़ौम  का
आधी  बची  इस  उम्र  पर
बाक़ी  यही  इल्ज़ाम  था .......!!

साँसें  पल  भर  को  रुकीं
दिल  हो  गया  था  मौन  सा
अपना  या  अपने  अक्स  का
झाँकूँ  गिरेबां  अब  मैं  क्या ....!!

मैंने  पलक  झपके  बिना
घर  जाके  हर  काग़ज़  चुना
शामिल  जहाँ  वो  ज़ात  थी
जिनमें  था  तमगा  क़ौम  का ...!!

तौहमत  लगे  हाथों  में  अब
ना  ख़ास  ना  मैं  आम  था
जल्दी  से  जल  जाने  तलक
इन  काग़ज़ों  का  मुक़ाम  था ...!!

फूँके  इबादत  और  पूजा
करने  के  चिन्हात  भी
तोड़ी  वो  दरवाज़े  की  तख्ती
जो  थी  मेरे  नाम  की
धूमिल  हुयी  तस्वीर  अब
आँखों  में  उजले  ख़ाब  की .......!!

क्या  करें  इस  क़ौम  का
क्या  है  ज़रुरत  नाम  की
नापाक़  है  वो  धर्म  जो  
खोदे  क़बर  इन्सान  की .....!!

ना  बसा  मुझको  ए  रब
गीता  में  ना  क़ुरआन  में
इन्सान  का  टुकड़ा  हूँ  मैं
मुझको  बसा  इन्सान  में  .....!!

****** विक्रम  चौधरी *******

Saturday, October 12, 2013

" कसम ....."


















" कसम ....."

खाओ  तो  क़सम  ज़रा
नहीं  करेंगे  जो  किया ...
दिखाओ  गहरी  धुँध  में
धुरंधरों  को  भी  दीया ...!!

खाओ  तो  क़सम  ज़रा
आवाम  के  उफ़ान  की
प्रपंच  पे  विराम  की
घरौंदे  में  आराम  की ...

नहीं  करेंगे  जो  किया
मिल  के  फ़ैसला  करो ...
ज़िन्दगी  की  माँग  में
सिन्दूर  केसरी  भरो ....

ठिठोलियाँ  उबाल  दो
महल  के  रक्तपान  की
तिजोरियाँ  उछाल  दो
नेताओं  के  मक़ान  की ...

जिस्म  के  जहाज़  में
ना  बैठ  कर  ख़ुदा  बनो
हम  भी  हैं , तुम  भी  हो
ये  कह  के  या  ख़ुदा  कहो ...

उजाड़  दो  नसल
पढ़े  लिखे  निक़म्मे  आम  की
उबार  दो  फसल
लुटे  पिटे  असल  रूहान  की ...

ना  देखो  अपना  फ़ायदा
फ़क़ीर  की  पुकार  में
बदल  दो  आज  क़ायदा
बिको  ना  अपने  आप  में ...

खोट  वो  नहीं  जो
मिल  गया  है  तुमको  हार  में
है  बुरा  जो  मिट  गया  है
जीत  के  विचार  में ....

क्यों  भौंडेपन  की  तन छिली
आदत  से  तुम  मजबूर  हो
क्यों  चाँद  की  शक़ल  में
अपनी  खोजते  तुम  हूर  हो ....

निर्वस्त्र  है  इच्छा  सुखन  की
पर  नहीं  नंगी  है  वो ....
कपड़ों  में  नंगे  इस  जहां  को
देख  डर  जाती  है  वो ....
कहती  है  मुझको  तू  दिला
ऐसा  नया  कपड़ा  अब  कोई ....
देह  पर  चढ़  कर  जो  मेरी
फिर  कभी  फटता  ना  हो ....

है  खेल  ये  क़ातिल  बड़ा
यूँ  सबके  मुँह  औंधा  पड़ा
जिसने  भी  की  बातें  असल
वो  शख़्स  ही  सूली  चढ़ा ....

खाओ  तो  क़सम  ज़रा
नहीं  करेंगे  जो  किया ...
दबा  दो  क़ब्र  में  वो  सब
दरिंदों  ने  जो  भी  दिया ...

खाओ  तो  क़सम  ज़रा
नहीं  करेंगे  जो  किया ....
दिखाओ  गहरी  धुँध  में
धुरंधरों  को  भी  दीया ......२ , २ , २ !!


**** विक्रम  चौधरी *****

Saturday, January 5, 2013

" होगा जब सब ओर तमाशा ....."





















" होगा जब  सब  ओर  तमाशा ....."

लाख  पते  की  बात बाँटने
एक  पते  पर  आया  हूँ .... !
बेज़ारी  का  जाल  काटने
लफ़्ज़  कटारी  लाया  हूँ ....!!

होगा जब  सब  ओर  तमाशा
गीत  वही  फिर  गाऊँगा
अय्याशी   के गाल  की  गुत्थी
नाप  नाप  खुलवाऊँगा ......!!

जां  निगलेगी  बंजर  धरती
इन्सां  जब  अंधा  होगा
फल  पकते  ही  ग़ाज़  गिरेगी
हर  बगिया  दंगा  होगा  .....!!

और  बँटेंगी  गर्म  सलाखें
जिस्म  पे  कपड़ा  ना  होगा
हर  नुक्कड़  बस्ती  में  डंका
धर्म  का  बेढंगा  होगा
कान  में  लोरी  मौन  रहेगी
हर  बच्चा  गूँगा  होगा
रात  खुरों  की  चोट  सहेगी
यम  आज़ाद  खड़ा  होगा
चींख  नहीं  निकलेगी, फिर  भी
मौत  का  सन्नाटा  होगा ......!!

और  लुटेगी  लाल  चुनरिया
घोर  सियासी  कोड़ों  पर
वार  करेगी  गरज  के  हिंसा
बोझ  की  मारी  नारी  पर
बच्चे  बूढे  सब  राह  तकेंगे
कटेंगे  मर्दों  के  जब  सर .....!!

और  आसमान  से  गिरेंगी  परियाँ
ख़ाब  धराशाही  होंगे
नींद  में  बनते  ताजमहल
खण्डहर  की  धूल  चढ़े  होंगे
रात  बड़ी  गहरी  होगी
पलकों  के  द्वार  खुले  होंगे ....!!

चौखट  पे  कुत्तों  की  दस्तक
दहशत  में  भीग  रही  होगी
फाँके  में  घटते  दूध  को  माँ
करवट  से  सींच  रही  होगी
लम्बी  होंगी  दिन  की  घड़ियाँ
इच्छा  बेजान  पड़ी  होगी .......!!

तब  तोड़  ग़ुलामी  के  पिंजरे  को
दौड़  के  पंछी  आयेंगे
दाना  तिनका  छुपकर  थोड़ा
मेरे  घर  को  भी  लायेंगे .......!!

मैं  रहम  के  नंगे  हाथों  को
बेशर्म  खड़ा  फैलाऊँगा
पंछी  के  पूछे  जाने  पर
आदम  की  ज़ात  बताऊँगा ....!!

और, कहूँगा  पंछी  से  ले  चल
अपनी  ख़ामोश  ख़ुदाई  में
नर  हुआ  मदारी  मिट्टी  का
मन  की  मरदूत  बुराई  में .....!!

मैं  तान  के  चादर  फ़ुर्सत  की
चुपचाप  कहीं  सो  जाऊँगा
जब  खुलेंगी  आँखें  ज़िल्लत  में
काग़ज़  और  कलम  उठाऊँगा ...!!

होगा जब  सब  ओर  तमाशा
गीत  वही  फिर  गाऊँगा ............!!

******** विक्रम  चौधरी *********

Sunday, August 5, 2012

" ख़्वाहिश ....."

















" ख़्वाहिश ....."

चाट कर दरिया चली ख़्वाहिश पसीना भाँपने ..

काग़ज़ उढ़ा कर फूल को ख़ुशबू का सीना ताकने ..
कट्टीखानों में मवेशी बोझ अपना ढो चले ..
खुल के चरवाहे लगे हैं दुम लगा कर नाँचने ..........!!

पिट गयी बेग़म की बाज़ी इक्क़ा फिर से है तना ..

मजनुओं के हाल सा मैदान में वो भी धुना ..
कौंधी दोपहरी लाल पर माटी का लड्डू वो बना ..
दिल पसीजेगा नहीं कर दो कलेजे को मना ..
लूट है बर्फ़ी अदब की छूत को दे दो पनाह ..
माँ से जा कर कह दो के किलकारी सुनना है गुनाह ..

आग तुम लग जाने दो पानी का अब क्या काम है ..

जलते बुझते जिस्म की आदत में अब आराम है ..
पास है गज़ भर ज़मीं अंतिम वही विश्राम है ..
चटपटे बाज़ार में कत्थे में रगड़ा पान है ..
मुस्कुराती सुर्ख़ होठों से वो अपनी जान है ..
हाथ में तनख्वाह है पूरी और नज़र बेइमान है ..
नाज़ है हमको हमी पर हमसे दश्त -ए- शाम है ..
ग़ैर की क्या है ज़रुरत घर में ही हैवान है ..
गजरों से महकी ज़ुल्फ़ से दिल की बँधी हर डोर है ...
और रात के ढलने तलक जेबों का खाली शोर है .......

उठती उँगली एक है बाक़ी तो अपनी ओर हैं ......

प्यास है इच्छा का प्याला मन बलाकी चोर है ............!!

**************** विक्रम चौधरी *****************

Saturday, July 14, 2012

" अन्धों का राजा ......"






















"  अन्धों  का  राजा ......"

तीखी  सूरत  इश्तेहारी  चाँदनी  कहलाएगी 
वो  सुहानी  शाम  होठों  की  हँसी  ले  जायेगी 
झींगुरों  की  चींख  से  बच्चों  का  दम  घुट  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!

चमगादड़ों  और  उल्लुओं  में  युद्ध  होगा  बेपनाह 
जिस्म  उतरी  खाल  होगा  खूं  चखेंगी  तितलियाँ 
आग़ाज़  होगा  रूद्र  का  डमरू  ना  होगा  हाथ  में 
खट्केंगी  घर  की  कुण्डियाँ  होगा  ना  कोई  पास  में  
इश्क़  बिगड़ी  बात  होगा  इस  अँधेरी  रात  में 
सिसकियों  में  हार  होगी  दर्द  की  शुरुआत  में 
आसमां  सूरज  को  ताला  मार  कर  सो  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!  

होंगी  अघोरी  और  फ़क़ीरों  की  दुआएँ  ख़ाक  में 
मन्त्र  होंगे  मैं  चढ़े  ज्ञानी  चबेगा  स्वाद  में 
राम  का  टूटेगा  दर  अल्लाह  छुपेगा  मांद  में 
हैवानियत  रौंधेगी  सर  इन्सानियत  की  आड़  में 
पंछी  भी  अब  सीने  से  लग  कर  जात  अपनी  गायेगा    
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!

भोर  भी  इन्सां  को  चकमा  दे  के  झट  छुप  जायेगी 
गुल्लक  भी  सिक्कों  की  जगह  ख़ाबों  के  ख़त  भर  लाएगी 
और  छनेंगी  बादलों  से  रेशमी  हैरानियाँ 
राज़  खोलेंगे  दरीचे  तोड़  कर  ख़ामोशियाँ 
शाख़  ओढ़ेगी  नुकीली  दीमकों  की  टोपियाँ 
ब्राह्मिनों  की  आँख  ढूंढेंगी  सुनहरी  बोटियाँ 
कारवाँ  बदनाम  राहों  पर  कहीं  खो  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!

क़ायर  शराबी  होड़  में  कोरी  पहल  कर  जाएगा 
बावरे  मन  की  कथा  सुबह  को  फिर  दोहराएगा
हाँसिल  नहीं  उसको  सबर  पाया  नहीं  उसने  जुनूं
वो  शौक़  में  फ़िर्दौस  की  गुत्थी  फ़क़त  सुलझाएगा 
आया  ना  उसको  चैन  पाकर  रूप  ऐसा  बागवां
वो  ओढ़  सातों  रंग  अपने  रंग  पर  पछतायेगा 
ज़िल्लत  में  निगला  कौर  भी  अटखेलियाँ  कर  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!  

खिलखिलाती  मंद  मुस्कानों  पे  कर  लग  जाएगा 
चील  की  चढ़ती  जवानी  से  मुशक  डर  जाएगा 
खौफ़  खाने  को  महज़  बाक़ी  है  अब  परमात्मा 
आ  गया  ग़र  वो  ज़मीं  पर  खां  म  खां  लुट  जाएगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!!

साथ  ले  कर  चल  रहा  हर  एक  बशर  परछाईयाँ 
उखड़ी  साँसों  में  हैं  शर्मिंदा  पड़ी  गहराईयाँ 
कौन  आ  धमका  ना  जाने  अटपटा  इस  भीड़  में 
जिसकी  ना  परछाई  थी  ना  दूध  था  वो  खीर  में 
बंद  कर  लीं  हमने  आँखें  अब  ना  कुछ  दिख  पायेगा 
और  भूल  में  अन्धों  का  राजा  तख़्त  पर  चढ़  जाएगा ....!! 

**************** विक्रम  चौधरी ********************

Friday, June 8, 2012

" होना ना उदास ...."





















" होना  ना  उदास ...."

अहम्  करेगा  नाश 
होगा  ज्ञान  का  मज़ाक 
मंथरा  करेगी  राज 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

चिट्ठियाँ  खुलेंगी  फीकी 
बातें  होंगी  जिसमें  रूखी 
लफ़्ज़  सलवटों  से  होंगे 
होगा  प्रेम  का  विनाश 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

नौकरी  मिलेगी  झूंठी 
पहरेदारी  की  अँगूठी
तनख्वाह  लॉटरी  पे  होगी 
होगा  हौसला  हताश 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

मंज़िलें  दिखेंगी  भूंखी 
राहें  प्यासी  होंगी  खूं  की 
मुद्दा  जीत  का  उठेगा 
होगा  मूहँफटों  सा  दास 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

ख्वाहिशें  बढ़ेंगी  तीखी 
होंगी  कोशिशों  से  भीगी 
क़िस्सा  सरमुंडा  सा  होगा 
होगा  धैर्य  का  भी  हास  
पर  तू  होना  ना  उदास ...!

अहम्  करेगा  नाश 
होगा  ज्ञान  का  मज़ाक 
मंथरा  करेगी  राज 
पर  तू  होना  ना  उदास ...!!

*** विक्रम  चौधरी *** 

Sunday, May 27, 2012

" निषेध ......"


















" निषेध ......"
क्या  राजा  क्या  रंक
क्या  साँझा  क्या  जंग
सब  वर्चस्व  की  जद्दोज़हद  है ...!!
क्या  सही  क्या  ग़लत
क्या  उलट  क्या  पलट
सब  वैमनस्यता में  सना शहद  है ...!!
क्या  हिंसा  क्या  अहिंसा
क्या  सुकूं  क्या  चिंता
सब  अधरों  से  उगलता  खेद  है ...!!
क्या  क़ब्र  क्या  चिता
क्या  लिखा  क्या  मिटा
सब  रंगों  में  काला  सफ़ेद  है ...!!
क्या  प्रेत  क्या  बशर
क्या  रात  क्या  सहर
सब  ज़िन्दा  है  ज़िन्दगी  निषेध  है ...!!!!

रंगीन  कूचे  हैं  चौपट  चौबारे   हैं ...
झूठे  से  चूल्हे  है  रोटी  से  हारे  हैं ...
महलों  के  जमघट  ने  रस्ते  सँवारे  हैं ...

क्या  सफ़र  क्या  डगर
क्या  मदद  क्या  नज़र
सब्र  टूटा  है  आरम्भ  निषेध  है ...!!!!!!


********** विक्रम  चौधरी ***********